௳॥• अंकलोकः॥ टीकाएँ॥ शब्दावली। अमेथिस्ट क्रमक के अनुवाद में प्रयुक्त। टीका अथवा पत्र प्रकाशन। कचरालेख। पुनःप्रसारक तथा ग्राहक। विभेदक। लेखाएँ। ग्राहकताएँ। आद्यताएँ। समयांकन प्रवेशांकन निर्गमनांकन। पारणशब्द। प्रमाणीकरण। ख्याप्य तथा गुप्त अथवा निजी कुंचिका। अष्टक। षोडशांकरूप। टाँकाफलक। रहस्यीकरण। जैविकमात्राएँ। पररूपण। स्मारकचिह्न। इष्ट। प्रपत्रस्थान। अभिलेख सेवासंगणक। संकुचित अभिलेख। घुण्डी टाँकें। प्रगतिमान पट्टी। मार्गदर्शन पट्टियाँ। विषयसूचक। तत्क्षणप्रसार। पण्यक्षेत्र। पूर्वीक्षण। पृष्ठघुमाव। प्रयोगमाध्यम शैली। प्रेषण प्रेषक संयुक्तप्रेषण। समावृत संदेश। संयोजन। मध्यस्थ। प्रत्याह्वान जालपता। पीठशय्यादि। विद्युत्कणयन्त्र। संग्रहार्थ। धनकोष। उपहारकोषयुक्त। ज्साप तथा ज्सापोपार्जन योजना। टकसाल। श्रमप्रमाण। लिपिखण्ड। बिटकोयिन खण्डश्रृंखला। लैटनिंग चालान ॥१८०॥ सावधान। अमेथिस्ट पर सभी चित्र चलचित्र का स्वचालित अवरोहण बाधित रखना उचित ॥१७९॥ नहि। न च हि च। निषेधः। अभावेनह्यनोनापि। इत्यमरः। यथा। ॰नहिनहिनहीत्येवकुरुते। इत्युद्भटः। हिन्दी में निषेधार्थक अव्यय चन्द्रबिन्दु युक्त नहीँ। संभवतः हाँ के जैसे। शिरोरेखा के ऊपर ई मात्रा होने के कारण सरलीकृत बिन्दु युक्त नहीं॥ हि। निश्चयार्थक अव्यय। हिन्दी में ही॥ हाँ। आम् ॥१७८॥ अमेथिस्ट। नोस्ट्र आण्ड्रोयिड क्रमक का प्रयोगमाध्यम स्तर हिन्दी अनुवाद चल रहा है। सहयोग उपालम्भ सुधार शोधन इत्यादि स्वीकृत ॥१७७॥ ध्यातव्य। शक कालगणना में क्रोधी संवत्सर आज से चल रहा है। अर्थात श॰ १९४७ वर्ष का संवत्सर नाम है। पर सामान्यतः लिखने में गत वर्ष अर्थात १९४६ ही लिखा जाता है दिनांक इत्यादि में॥ कालः। अद्य १९४६ तमेशकाब्दगते १९४७ तमेशकाब्दे क्रोधीसम्वत्सरे चैत्रशुक्लप्रतिपदा। मंगलवारः १९४६:०१:शु:०१ ॥१७६॥ नोस्ट्र। एक वैश्विक अनेकत्रित जालसमूह। स्व ख्याप्यकुंचिका यथा। npub1ww6huwu3xye6r05n3qkjeq62wds5pq0jswhl7uc59lchc0n0ns4sdtw5e6 ॥१७५॥ कालः। अद्य ब्रह्मणोऽह्निद्वितीयपरार्धेश्रीश्वेतवराहकल्पेवैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविम्शतितमेयुगेकलियुगेकलिप्रथमचरणे १९४६तमेशकाब्देशोभकृत्सम्वत्सरे फाल्गुनस्यशुक्लद्वादशी। गुरुवारः १९४५:१२:शु॰:१२ । चन्द्रः अश्लेशा। सूर्यः मीन वसन्त उत्तरायण देवयान। बृहस्पतिः मेष॥ ग्रहस्थिति चित्र द्रिकपंचांग क्रमक से ॥१७४॥ फौण्डेषण। आसिमोव के प्रसिद्ध कहानी श्रृंखला का चलचित्र संस्करण। कल्पना शक्ति तथा उत्कृष्ट दृश्य रचना से भरपूर। परन्तु पुस्तक की कहानी से इतना भिन्न था कि दर्शकों को साम्राज्य का पक्षधर बना देगा। हाहा। पुस्तक में फौण्डेषण का जो महत्व था सामर्थ्य था वो पकड नहीं पाए। वर्तमान सामाजिक विषयों पर मत जताने का वाहन बना दिया। अनपेक्ष्यतः हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ को मनमानी आचरण का समर्थक जैसे प्रस्तुत किया। ह्म्फ। समग्रतः पुस्तकीय संस्करण से बहुत तामसिक ॥१७३॥ विपणिः। पण्यविक्रयशाला। वाणिक्पथेच। आपणः॥ विचित्र बात है कि पाश्चात्य भाषाओं में विपणि के स्थान पर संपणि का एक विकृत रूप शब्द प्रचलित हुआ। जैसे कि ईस्टिण्डियाकम्पनी में। पणि शब्द का मूल अर्थ एक खाद्य वस्तु मानते हैं। हाहा॥ स्वमत है कि लाभार्थ व्यापारार्थ विक्रेता संस्थाओं के लिए विपणि शब्द का प्रचलन उचित ॥१७२॥ तुलामानम्। प्र॰। रत्ती माष कर्ष पल धरण शतमान जैसे तोलन मात्राएँ क्या थे। पण निष्क के क्या मूल्य थे। सुवर्ण रजत ताम्र रूपों के मूल्य का अनुपात क्या था॥ध्यातव्य। पण अथवा कार्षापण ताम्र से बने रूप थे। रजत से बने रूपों को रूप्य कहा जाता था॥ चित्रम्। प्राचीन सरस्वती सभ्यता से प्राप्त प्रतिमानों की सूची। नामकरण अनुमानतः भार के अनुपात पर आधारित। धरण सुवर्ण का। शतमान रजत का॥ चित्रम्। एक कर्ष का संशोधित भार॥ दो सौ छप्पन पण का एक निष्क। चार सुवर्ण का भी एक निष्क। एक सुवर्णरूप का भार अस्सी रत्ती॥ उ॰। एक कर्ष का भार १३:६२५ ग्रा॰ मानें तो एक रत्ती ०:१७०३१२५ ग्रा॰। ३२० रत्ती शतमान। ३२०० रत्ती धरण॥ ६४ पण एक सुवर्ण। ४ सुवर्ण एक निष्क॥ सुवर्ण ताम्र अनुपात एक का चौंसठ। कुछ विदेशी व्यापारी कथनों से सुवर्ण रजत का अनुपात सम्भवतः एक का दस था॥ वर्तमानतः पूर्वोक्त भार की एक रत्ती सोना का भाव रु॰ ११०२:९४ ॥१७१॥ स्टारवार्स आण्डोर। कट्टर वै॰का॰कथा प्रेमियों को भी परितुष्ट करनेवाला चलचित्र सरणी। तारासंगम साम्राज्य के चालचलन का अद्भुत चित्रण। सुतीक्ष्ण वार्तालाप तथा चित्र सम्पादन विशेषतः कारागार पलायन चित्राम्श में। अभिनयकर्ता भी अनेक उत्तम श्रेणी के ॥१७०॥ नया गोत्रप्रवर बोबाफेट्ट। हाहाहा। गोत्रः अर्थात गां पृथिवीं त्रायते रक्षतीति। पर्वत गिरि शिखर भी। कुल सन्तान भी ॥१६९॥ चलचित्रसरणी। त्रयर्कमण्डल। भौतिकशास्त्र में विकास पर रोक लग जाए तो क्या होगा। इस प्रश्न पर आधारित प्रसिद्ध चीनिस्तानी वैज्ञानिक काल्पनिक कहानी का चलचित्र संस्करण। इसमें परग्रह सभ्यता का स्वयम अनुभव कराने के लिए एक त्रिमात्रा चित्रक्रीडा का अद्भुत प्रयोग किया गया। शत्रु नाव का विखण्डन दृश्य भी बढिया। पर कहानी स्वयम भौतिकवादियों के लिए निराशाजनक॥ गीतम्। चीनिस्तानी गूझंग वाद्ययन्त्र ॥१६८॥ चलचित्रम्। आखेट्य। क्या प्राचीन तन्त्र किसी अत्याधुनिक तन्त्र से लडाई जीत सकता है। परग्रही आखेटक चलचित्र सरणी में एक नया काण्ड जो कूर्मद्वीप के मूलनिवासी कोमांची जनजाति के मध्य घटता है। चित्र थोडा लम्बा है तथा कुछ अम्श अवास्तविक पर कहानी की नव्यता के लिए देखने योग्य ॥१६७॥ चित्रम्। मृग रूप मारीच का पीछा करते हुए राम लक्ष्मण॥ चित्रम्। यति वेश रावण की सहायता करती हुई सीता॥ चित्रम्। राम को प्रणाम करते हुए विभीषण। दूर से देखते हुए कुम्भकर्ण॥ शून्योत्तरप्रश्न। शास्त्र का पालन नहीं किया तो शास्त्रबल क्या होगा॥ चाहे जितने भी कुम्भकर्ण जुड जाएँ॥ चित्रम्। रावण की सेना ॥१६६॥ कण्टकशोधनम्। प्र॰। कण्टक लोगों को भ्रष्ट कैसे करें। उ॰। तामसिक व्यक्तियों को सामान्य इन्द्रिय सुख के लोभ से। राजसिक व्यक्ति प्रभाव के लोभ से। जैसे अन्य बडे प्रभावी व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध का स्रोत बनकर। ज्ञानी को ज्ञान के लोभ से। जैसे अन्दर की बातों का स्रोत बनकर। सौ सच्ची बातों में एक झूठ समावेश करें तो ज्ञानी भी भ्रष्ट। धार्मिकों को धर्म के लोभ से। जैसे मन्दिरों को बचाने अथवा मुक्त करने के बडे बडे अभियानों में सहभागी बनाकर अधर्म का समर्थक बना दिये गये॥ लोभ के अतिरिक्त भावुकता से भी लोगों को भ्रष्ट किया जा सकता है। सामदानभेददण्ड में से यह साम का उपाय है। जैसे कि कष्टकाल में साथ खडे होने से अथवा समशत्रु का विरोध करने से ठोस सम्बन्ध रचाया जा सकता है। इस स्थिति में फँस गये तो विभीषण की कथा स्मरणीय। रावण के भाई होकर भी उसे छोडकर राम के पक्षधर बने। कृत्यगत विश्लेषण नहीं किया। पूर्ण रूप से रावण का सहवास तथा समर्थन करना त्याग दिया। विपरीततः कुम्भकर्ण ने भ्रातृनिष्ठा निभाया। अधर्म के पक्षधर बने॥ क्या आज के कुम्भकर्ण विभीषण बन सकते हैं। कठिन परीक्षा है ॥१६५॥ अर्थशास्त्रे। तुष्टान् अर्थमानाभ्यां पूजयेत्। अतुष्टान् सामदानभेददण्डैः साधयेत् ॥१६४॥ देशमानम्। प्र॰। एक माराथोन दौड में कितने योजन। क्र॰। (कथय (देशमानान्तरण (घ्नसहस्र (अंक "४२:१९५"))))। फ॰। (३ योजन ९७३ दण्ड ३५:१८१८२ अंगुल) ॥१६३॥ पाठ्य। सूचीवर्तक क्रमलेख भाषा। समस्याओं को सुलझाने की विधि जो अन्य प्रचलित संगणक भाषाओं से थोडा भिन्न है। आरम्भ से ही भाषा को सरलतम तथा शक्तिशाली बनाने का प्रकल्प था। अविशेषज्ञ के लिए भी सुलभ। पूर्णतः प्रश्नोत्तरी रूप में तथा पर्याप्त उदाहरण समेत। लगभग पचास वर्ष पुराना पर नवीनतर संस्करण उतना सरल नहीं ॥१६२॥ कालः। अद्य शनिवारः शोभकृत्स्यमार्गशीर्षस्यशुक्लैकादशी। १९४५०९शु॰११ । चन्द्रः भरणी। सूर्यः धनु शिशिर उत्तरायण पितृयाण। बृहस्पतिः मेष ॥१६१॥ जालावरोहण। क्र॰।(अग्र (सूत्रविघटय (जालग्राहय "अंकलोक.भारत/८")))। फ॰। "पाणिनीयव्याकरणसूत्राणि।" ॥१६०॥ एकदावर्तनम्। एकदा अर्थात एकस्मिन्काले॥ संचारयन्त्र आजकल बहुवर्तक होते हैं। क्या क्रमलेखों में सभी उपलब्ध क्रमवर्तकों के प्रयोग से क्रमगति बढा सकते हैं॥ क्र॰। (संख्या (क्रमवर्तकगणन))। फ॰। "८"। क्र॰। (समयमान (क्रमलेख (प्रतिकरण विभेदाः (सूचीरचय (अंक "८") "१४०९६"))))। फ॰। वास्तविक। (१ काष्ठा १५ निमेष)। क्र॰। (समयमान (क्रमलेख (एकदाप्रतिकरण विभेदाः (सूचीरचय (अंक "८") "१४०९६"))))। फ॰। वास्तविक। (२ काष्ठा ३ निमेष)॥ अपेक्षित परिणाम के विपरीत एकदा करण के प्रयोग से यह अधिक समय लेने लगा। ह्म्फ। शोधनीय ॥१५९॥ कालमात्रा। प्र॰। एक काष्ठा में कितने निमेष। उ॰। अठारह। इसपर कुछ ग्रन्थों में मतभेद है। परन्तु सिद्धान्तशिरोमणि में भी निमेषैर्धृतिभिश्चकाष्ठाअर्थात अठारह दिया गया है। अतः यही प्रयुक्तव्य॥ यूनिक्स शैली यन्त्र संचालनक्रमकों में अपना ही यूनिक्स युग उपलब्ध होता है। इसमे कितने दिन बीत चुके। क्र॰। (समयान्तरण (यन्त्रसमय))। फ॰।("१९७०६" अहोरात्र "१०" मुहूर्त "०" कला"९" काष्ठा "१" निमेष) ॥१५८॥ क्रमलेखन। संख्याविभेदाः।(निरूपय (विभेदाः ख)(संख्या (आचर घ्न (एकादि (अंक ख)))))॥ उ॰। (सूची (विभेदाः "१०") (विभेदाः "४"))॥ फ॰। ("३६२८८००" "२४") ॥१५७॥ लीलावती॥ संख्याविभेदाः। स्थानान्तमेकादिचयाङ्कघातः संख्याविभेदानियतैः स्युरंकैः॥ उ॰। पाशांकुशाहिडमरूककपालशूलैः खट्वांगशक्तिशरचापयुतैर्भवन्ति॥ अन्योन्यहस्तकलितैः कतिमूर्तिभेदाः शंभोर्हरेरिवगदारि सरोजशंखैः॥ न्या॰। स्थानानि १० जातामूर्तिभेदाः शिवस्य ३६२८८०० एवं हरेश्च २४ ॥१५६॥ अनुवर्तन। पुनर्वर्तन मूलविधि भाषाओं में अनुवर्तन का क्या महत्व। बहुत समय बचा सकता है कुछ प्रकरणों में॥ कार्य उदाहरण स्वपाठ्य स्खीम जालपुस्तक से ॥१५५॥ परिव्यवस्था। अथवा परितन्त्र। किसी भी क्रमलेख भाषा के लिए विस्तृत परिव्यवस्था उपलब्ध होना आवश्यक है। गनू मुक्त क्रमलेख जगत में लगता है कि गयिल भाषा में श्रमनिवेश किया जा रहा है। इसके परिणामतः ग्वीक्स संचालक बना रहे हैं जो पुनरुत्पादकता के द्वारा क्रमक सुरक्षा का विश्वास दे सकता है। गनू संस्था के चालीस वर्ष में शून्य से वर्तमान व्यापक उपयोगिता की यात्रा पठनीय ॥१५४॥ सूक्ष्मता। दक्षता का संकेतक माना जाता था क्रमलेख जगत में कुछ ही वर्ष पूर्व ॥१५३॥ अस्माकमन्तिमः। कहानी प्रजागरवादी। कूर्मद्वीप की नैसर्गिक सुन्दरता का चित्रण उल्लेखनीय। पर ये कठफूल रोगी पिशाच भयंकर से अधिक विरूपी ही लगते हैं ॥१५२॥ फलकम्। देवनागरी फलक की एक समाकृति। प्रयोग करने के लिए आंग्ल क्वेर्टी फलक पर चिप्पियाँ लगाना पडता है। चित्र विकिपीडिया से॥ आण्ड्रोइड के लिए देवनागरी फलक अवलम्बन स्थापना क्रमक गिटहब पर उपलब्ध॥ देवनागरी चिप्पियों के लिए एक जालविपणि अमाज्सोन पर उपलब्ध॥ यह चिप्पियों का उपाय बहुत ही निम्न स्तर जुगाड है। प्रशंसनीय नहीं। शोधनीय ॥१५१॥ इतिहासः। प्र॰। हास्यात्मक रूप में चित्रित स्त्री अपहरण की यह घटना कब हुआ कहाँ हुआ किसके आदेश पर हुआ। उ॰। यह प्रख्यात वृत्तान्त रोम नगर तथा रोमराज्य की स्थापना काल का है। इस दुष्कृत्य करने का आदेश रोमराज्य के संस्थापक रोम्युलुस ने स्वयम दिया। ह्म्फ। पृथक बात है कि इन स्त्रियों ने तत्पश्चात युद्ध रोकने के लिए अपहरित होना स्वीकार लिया ॥१५०॥ तापः। प्र॰। चलचित्राम्श में कोषालय लुटेरों को रोकनेवाले नगर कर्मचारियों की कार्य उपाधि क्या होनी चाहिए। सुझावतः उ॰। रक्षपाल। वह जो रक्षा करता है। रक्षापालिका संस्था नाम॥ वर्तमान प्रयुक्त विदेशी शब्द का मूल कहा जाता है कि पुर अर्थात नगर सम्बन्धित है। परन्तु अधिक सम्भावना है कि पाल अथवा पालिका शब्द सम्बन्धित है॥ पालः। क पालयति॥ पर भारत में पालिका का अर्थ नगर ग्राम वासियों का सामान्य सेवा निगम मात्र है। रक्षा विशेष नहीं। तो रक्षपाल रक्षापालिका जैसे सेवाविशेष शब्द रखना उचित। गीतम्। संतिष्ठ्यलहर वाद्यप्रकार। उद्धावन प्रसंग ॥१४९॥ अस्त्र। प्र॰। चित्रित अस्त्र का नाम क्या होना चाहिए। उ॰। शतघ्नी। अयःकण्टकसंछन्ना शतघ्नीमहतिशिला। अर्थशास्त्र दुर्गविधानम् में उल्लेख है॥ भुशुण्डी। पाषाणक्षेपणार्थे चर्ममययन्त्ररूपे अस्त्रभेदे॥ जघ्निः। हननयोग्यास्त्रम्॥ नव्यतः गोलिकास्त्र नालास्त्र आग्नेयास्त्र इ॰। प्रचलित उत्तर यूरोपीय मूल नाम घ्न से सम्बन्धित तथा जघ्नि शब्द के निकट है। घ्न अर्थात नष्ट करनेवाला॥ स्वमत है कि छोटे आकार अस्त्र के लिए जघ्नि अथवा जघ्नी उचित। तथा लम्बे आकार के लिए नालिकास्त्र। तथा युद्ध में पडावक्षेत्र पर प्रहार करने के लिए प्रयोजित बडे आकार अस्त्र के लिए गोलास्त्र॥ गीतम्। रक्तांकित प्राकार परिधुन ॥१४८॥ क्रमलेखन॥ कार्य प्रारूप। अमुक कार्य। ख छ ठ परिमात्रा। या नी पी लो अव्यक्त। ॰॰॰ । ख दातव्य। इतिकार्यम॥ सम न्यून समन्यूनवा तोलनवाचक॥ यदि प्रारूप। यदि यी एक सम तथा नी दो न्यून। तदा। ॰॰॰ । अन्यथा। ॰॰॰ । इतियदि॥ चक्र प्रारूप। यी तु तीन । चक्र शून्य यी न्यून तावत। यी कथयतु। यी तु एक यी व्य। इतिचक्रम॥ यद्यभ्यन्तरयदि। यदि ॰॰॰ ।१। यदि ॰॰॰ ।२। ॰॰॰ । इतियदि।२।१। ॥१४७॥ कालः। अद्य रविवारः शोभकृत्स्यभाद्रपदस्यशुक्लनवमी। १९४५॰६॰शु॰९ । चन्द्रः पूर्वाषाढा। सूर्यः कन्या शरद दक्षिणायन पितृयाण। बृहस्पतिः मेष ॥१४६॥ भारतवर्ष। भागवत तथा वायु पुराण में ऋषभ पुत्र भरत से भारतवर्ष नामकरण स्पष्ट है। महाभारत में शकुन्तल पुत्र भरत से भारतम् कुलम् कीर्तित कहा गया। तो इन तथ्यों में विरोध नहीं। ऋषभपुत्र से ही भारतवर्ष ॥१४५॥ प्रश्नः। पुराण इतिहास शास्त्र में विसंगति हो तो क्या करें। उत्तरम्। पुराण का इतिहास से भेद हो तो इतिहास प्रामाणिक। इतिहासों में व्यास वाल्मीकि प्रामाणिक। इतिहास का शास्त्र से भेद हो तो शास्त्र प्रामाणिक। ॰ । शास्त्रों में भेद हो तो वेद प्रामाणिक। वेद में अनुपलब्ध अथवा अस्पष्ट तो शास्त्रार्थ मीमाम्सा परीक्षण अवलोकन इत्यादि ॥१४४॥ चित्रम्। कुंग्फूपाण्डा से। अन्ततः दुष्ट शिष्य अपने मूर्ख आचार्य को ही मारने लगता है। इसीलिए धार्मिक परम्पराओं में आचार्यों को मूर्खता की छूट कभी नहीं ॥१४३॥ तत्वसूची। प्रश्नः। पूर्वोक्त सत्रह मूलपदार्थ अतिरिक्त वर्तमान उपलब्ध लगभग सौ अन्य तत्वों का नामकरण कैसे करें। उत्तरम्। इसका गणित में सरल तथा परिपक्व उपाय है। क्योंकि तत्वसूची का क्रम अणुओं के नाभिकीय प्रकण संख्या पर दृढतापूर्वक आधारित है। तो सूर्य॰ ब्राह्मस्फुट॰ इत्यादि के भूतसंख्या विधि के प्रयोग से तत्त्वों के नाम बना सकते हैं। तथा आर्यभटीयम् के अक्षरसंख्या प्रणाली द्वारा तत्वों के संक्षिप्ताक्षर॥ उ॰। त॰१ नाम इन्दुद्रव्य अथवा इन्दु वायव्य संक्षिप्ताक्षर क॰। त॰६ अंगद्रव्य च॰। त॰८ वसुद्रव्य ज॰। त॰१४ इन्द्रद्रव्य ढ॰। त॰९२ युग्मनन्दद्रव्य खस॰॥ ध्यातव्य। एक ही तत्त्व के अनेक भूतसंख्या नाम बन सकते हैं। इसलिए संक्षिप्ताक्षर उनपर आधारित नहीं संख्या पर ही आधारित। दोनों प्रणालियों में संख्या का निम्न स्थान प्रथम अर्थात व्यतिक्रम लिखना परम्परागत॥ मिश्रपदार्थ। उ॰। गैरिकम् अर्थात रक्तवर्णधातुविशेषः के लिए अंगयुग्म वसुयुत। अभ्रकम् इन्द्रयुक्त खनिज॥ चित्रम्। इन्द्रद्रव्य। विकिपीडिया से॥ रसायनिक क्रियाफल लेखन प्रस्ताव। उ॰। चक४ सं ज२ २ फः चज २ सं क२ज २। कथ २ सं ट २ फः टथ २ सं क२ ॥१४२॥ व्यतिकण। भौतिकविज्ञान में सामान्य मत है कि सभी कणों के विलोम लक्षण युक्त कणों का भी अस्तित्व है। लक्षण जैसे कि विद्युत्भार धनात्मक अथवा ऋणात्मक। इनके नाम के लिए उपसर्ग प्रति के स्थान पर व्यति का प्रयोग उचित। व्यतिक्रम अर्थात उलटा क्रम। अतः व्यतिप्रकण व्यतिनिष्कणिका इत्यादि शब्द साध्य॥ किसी कण का अपने ही प्रकार के व्यतिकण के साथ टकराने से दोनों विलुप्त हो जाते हैं तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस कारण भविष्य में व्यतिद्रव्य इन्धन युक्त गतिजनक यन्त्रों के निर्माण की कल्पना है॥ चित्रम्। एक व्यतिविकण ॥१४१॥ अणुः। वर्तमान प्रयुक्त परमाणु शब्द के लिए केवल अणु संज्ञा उचित। तथा अणुओं के संग्रह के लिए अणुपिण्ड अणुगाँठ इत्यादि। अणु के नाभिकीय प्रकण निष्कण तथा कक्षीय विकण। नाभिकीय कणों के कणाम्श के छः प्रकार ॰आ प्र सं उत् वि परि॰। विद्युत प्रबल दुर्बल प्रवहों के प्रभाव से संगठित अथवा विगठित होकर ठोस तरल वायव्य पदार्थ उत्पादित। दुर्बल प्रवह से सम्बन्धित निष्कणिका के तीन भेद ॰वि आ सं॰॥ सभी नये नाम प्रस्तावतः॥ वायव्य। वायु से बना हुआ। ना ठोस ना तरल॥ चित्र विकिपीडिया से ॥१४०॥ तत्वसूची। सुवर्णम् रजतम् ताम्रम् लोहः वंगम् सीसकम् गन्धकः पारदः। तथा तुवरी टंकणम् सर्जिकाक्षारः यवक्षारः नीलांजनम् रसकः मनःशिला कपर्दकः वैदूर्यम् के मूल अथवा प्रमुख अथवा उत्पादित सत्त्व॥ कुल रूप से केवल १७ सत्रह मूलपदार्थ विदित॥ क्षार अम्ल लवण पदार्थों के वर्गभेद॥ क्रमः। नक्रमेणविनाशास्त्रं नशास्त्रेणविनाक्रमः॥ वाग्भट के रसरत्नसमुच्चयः से ॥१३९॥ रसायनशब्दावली॥ राजावर्तः। उपरत्नभेदः। विराटदेशजहीरकः। अल्परक्तोरुनीलिकामिश्रितप्रभः॥ मूषा। स्वर्णाद्यावर्त्तनपात्रम्। तैजसावर्त्तनी॥ द्रावक। द्रव रूप में करनेवाला। पिघलानेवाला॥ वह्निकर। पत्थर विशेष जिसपर चोट पडने से आग निकलती है। वह्निकरी उद्दीपयति॥ रसशाले पातनायन्त्रम् धूपयन्त्रम् ॥१३८॥ राक्षसहन्ता। पोलदेश के एक लेखक द्वारा प्राचीन स्लाव लोककथा आधारित काल्पनिक वीर कहानी। वस्तुतः यूरोपीय इतिहास में एैसे कथित चमत्कारकर्ताओं को मार दिया करते थे। तो इनको एक सकारात्मक रूप देकर थोडा प्रायश्चित्त करने का प्रयास लगता है। अथवा इतिहास को माँज डालने का। हाहा। इसका चलचित्र सरणी नेटफ्लिक्स जालचित्रमंच पर उपलब्ध। अत्याधिक नग्नता अतिरिक्त कहानी स्वयम तो आकर्षक समृद्ध तथा विविध पात्र विरचित है। न्यूनतः आज तक के प्रस्तुत तीन भाग॥ चित्रम्। वण्य अथवा उन्मद आखेट। एक पुराणकथात्मक दृश्य। गीतम्। आखेटक वा आखेट्य वा ॥१३७॥ ञत्व। ॰यी घ्न ठ॰ घातञ रू १ तु रू ० । ञ आसन्निकटतः २:७१८२८ । घात तथा छेदगणितीय परिकलनों में सामान्यतः प्रयुक्त आधार संख्या। अन्य व्यक्ताव्यक्त पूर्वोक्तवत ॥७॥ इस समीकरण द्वारा गणित के पाँच प्रमुख संख्याएँ ॰ठ ञ यी एक शून्य॰ का सम्बन्ध दर्शाया जाता है॥ रेखाचित्र गूगल से। ञ आधारित घातीय वृद्धि निरूपित ॥१३६॥ चक्रत्व। पी तु या घ्न ठ। ठ तु या हृ पी। या चक्र व्यास। पी परिधि। ठ चक्रत्व अविकारी ॥६॥ ॥१३५॥ समीकरण लेखन प्रस्ताव। बीजगणितम् आधारित॥ तु अर्थात तुल्य। अनु अनुपात्य। फ फल। रूं ऋणात्मक रू। या का नी पी लो अव्यक्त। यी काल्पनिक। भा अव्यक्त गुणन। व क घ वर्ग वर्गमूल घन। ख छ ठ अविकारी विशेष। स व्य घ्न हृ घात छेद समा अव। ॰॰ कोष्ठक। ॰भाजक हृ भाज्य॰ फ लब्धि स शेषम् ॥ उ॰॥ याव काव तु नीव ॥१॥ याकाभाछेद तु याछेद काछेद ॥२॥ यीव तु रूं १ । यी तु रूंक १ ॥३॥ गु॰प्रवह तु नीव हृ याकाभा घ्न ख। या का द्रव्यमात्रा। नी दूरी। ख गुरुत्व अविकारी ॥४॥ ऊर्जा तु या घ्न खव। या द्रव्यमात्रा। ख प्रकाशगति ॥५॥ ॥१३४॥ खण्डत्ववाद। भौतिकविज्ञान में एक प्रस्तावित वाद जिसमें ऊर्जा तथा प्राकृतिक शक्तियों के मूल्यों का खण्ड स्वरूप है। निरन्तरत्व नहीं। इसके लिए वर्तमान प्रयुक्त नाम प्रमात्रा यान्त्रिकी समझने में कठिनतर॥ प्रवह। भौतिकविज्ञान में मान्य चार प्राकृतिक आकर्षण विकर्षण शक्तियाँ गुरुत्व विद्युत्चुम्बकीय प्रबल दुर्बल के लिए शक्ति अथवा बल शब्द के स्थान पर प्रवह शब्द का प्रयोग उचित। प्रवहकण तथा प्रवहतरंग दो रूपों में। जैसे कि गुरुत्व प्रवहतरंग विद्युत प्रवहकण इत्यादि। चित्रम्। विद्युत द्रव्यकणों द्वारा कणतरंगद्वैतता दर्शाने का प्रयास। विकिपीडिया से। शोधपत्राभिज्ञापक १०:१०८८।१३६७:२६३०।१५।३।०३३०१८ ॥१३३॥ नवशब्दावली॥ क्रमवर्तक। संगणकों में गणित तथा तार्किक कार्य करनेवाला इकाई। ग॰त॰इ॰। विद्युत्तीय अम्शवाहक पदार्थ से बना। इस के लिए संसाधक शब्द अनुचित क्योंकि संगणक द्वारा सब कार्य साध्य नहीं॥ क्रमपात। क्रमादेश अथवा क्रमलेख में दोष अथवा अनपेक्षित कारणों से अपक्रम बाधा रुकावट इत्यादि घटना॥ क्रमचर। क्रम अनुसार चलनेवाला। संवादशील प्रक्रिया विशेष। संगणक युक्त विद्युत्तीय अयस्पुतली लोहपुतली इत्यादि उपकरण। मानवाकार यन्त्र॥ विमानिका। क्रमचरात्मक छोटे विमान॥ युद्धविमानिका। यु॰वि॰। विस्फोटकधारी विमानिका विशेष ॥१३२॥ शकाब्दः। त्रीणिकृतादीनिकलेर्गोऽगैकगुणाःशकान्तेऽब्दाः। इतिब्राह्मस्फुट॰॥ नन्दाद्रीन्दुगुणास्तथाशकनृपस्यान्तेकलेर्वत्सराः। इतिशिरो॰॥ भूतसंख्या में गोऽगैकगुणा तथा नन्दाद्रीन्दुगुणा दोनों ९७१३ अर्थात ३१७९ वर्ष। अग अर्थात अचल॥ कलि तथा शकान्त अथवा शक ज्योतिषशास्त्र के मानक समयबिन्दु हैं। ग्रहों के योगसंयोग आधारित। लौकिक वृत्तान्त पर आधारित नहीं। अतः इनका प्रयोग सर्वत्र उचित ॥१३१॥ बृहस्पति के उपग्रह। भारत में अनेक सहस्र वर्षों का ग्रहतारों का अवलोकन कुछ ही मासों में यूरोपियों द्वारा बृहस्पति के चार उपग्रहों के अवलोकन से परास्त हुआ। इनके प्रत्यक्ष गतिविधि दूरदर्शकयन्त्र द्वारा देखकर अन्य ग्रहों का सीधा अनुमान कर सके। तथ्यों का नया भण्डार उपलब्ध हुआ। परन्तु तत्कालीन शासनिक कुतन्त्र के कारण तथ्यवादी गालिलेयो को दुर्भाग्य ही प्राप्त हुआ। तथ्यवाद का स्वयम खण्डन करना पडा। गृहबद्ध अवस्था में ही मृत्यु हुई। यह यूरोप पर एक एैतिहासिक कलंक बन गया। चित्र विकिपीडिया से ॥१३०॥ प्रवहः। सात वायुओं में से एक। आवहप्रवहसंवहोद्वहविवहपरिवहपरावहाःसप्तमारुताः। इतिविष्णुपुराणे॥ आवहः। भूवायु। शिरो॰ के अनुसार इसका विस्तार लगभग १२ यो॰। वर्तमान लगभग ७ यो॰ मान्य है। भूमेर्बहिर्द्वादशयोजनानिभूवायुरत्राम्बुदविद्याद्यम्। इतिशिरो॰। अम्बुद अर्थात मेघ ॥१२९॥ प्रश्नः। क्या यह ग्रीक सिद्धान्त के उपचक्र अथवा परिचक्रवाद का अनुकरण था। उत्तरम्। नहीं। सिद्धान्तशिरोमणि में बताया गया है कि ये भिन्न उपाय हैं। परिचक्र को नी॰वृत्त उपाय नाम दिया गया। पृथक उपाय का नाम प्रतिवृत्त। उक्तामयैषाप्रतिवृत्तभंग्या॰। ॰ऽहंनी॰वृत्तस्यचवच्मिभंग्या। ॰प्राज्ञैःफलार्थंप्रविकल्पितंतत्। दोनों उपाय केवल फलार्थ। सूर्य॰ में वास्तविक ग्रह मध्यकक्ष के प्राक्पश्चात दक्षिणोत्तर अपकर्षित होने का ही स्पष्ट वर्णन है। परिचक्रवत चलने का नहीं ॥१२८॥  सूर्यसिद्धान्तः। प्रश्नः। भारत में ग्रहों के गतिविधियों की व्याख्या कैसे करते थे। उत्तरम्। प्रत्येक ग्रह के कक्ष में शीघ्र मन्दोच्च पात नामक अदृश्य ग्रह अथवा काल मूर्तियों के कारण। तथा प्रवह नामक व्योमवायु अथवा मरुत द्वारा॥ ध्यातव्य है कि चन्द्रमा का केवल उच्च तथा अन्य ग्रहों का मन्द अथवा मन्दोच्च का नामभेद सूत्रों में है। सिद्धान्तशिरोमणि में शीघ्र के लिए चलोच्च शब्द है परन्तु शीघ्रोच्च शब्द सूत्रों में विदित नहीं॥ राहु चन्द्रपात का नामविशेष। ग्रहण नहीं। पात अर्थात कक्षमण्डल से पात ॥१२७॥ आर्यभटीयम्। संख्याएँ। ३:१४१६ । चक्र के परिधि तथा व्यास का अविकारी अनुपात॥ ख्युघृ। ४३२०००० । एक युग में सूर्य के चक्कर क्रान्तिवृत पर॥ ङिशिबुणॢष्खृ। १५८२२३७५०० । एक युग में पृथ्वी का अपने अक्ष पर चक्करों की संख्या॥ ञिला। १०५० । पृथ्वी का व्यास योजन में॥ नृषि स्चाङ्गुलो घहस्तो। एक योजन ८००० दण्ड अथवा नृ। एक दण्ड ९६ अंगुल अथवा ४ हस्त॥ वर्तमान विज्ञान तथा पुरातत्त्व खोज अनुसार योजन मापदण्ड के प्रयोग से पृथ्वी का व्यास लगभग ९४४ यो॰ है। खुला प्रश्न है कि इस परिकलन में सौ योजन की चूक कैसे हुई ॥१२६॥ कलार्धज्याः। २२५ २२४ २२२ २१९ २१४ २१० २०५ १९९ १९१ १८३ १७४ १६४ १५४ १४३ १३१ ११९ १०६ ९३ ७९ ६५ ५१ ३७ २२ ७ । चक्र के अर्धज्याओं के अन्तरों की श्रृंखला। कला अथवा चक्राम्श के पलों में ॥१२५॥ कालः। अद्य गुरुवारः शोभकृत्स्याषाढस्यशुक्लचतुर्थी। १९४५ व॰ ४ मा॰ शु॰४ ति॰ । चन्द्रः अश्लेषा नक्षत्र। सूर्यः मिथुन राशि वर्षा ऋतु दक्षिणायन देवयान। बृहस्पतिः मेष राशि॥ ग्रहस्थिति चित्र द्रिकपंचांग क्रमक से ॥१२४॥ रामायणम्। क्वगतिर्मानुषाणांचधनुषोऽस्यप्रपूरणे। आरोपणेसमायोगेवेपनेतोलनेऽपिवा॥ श्रीमद्रामायणे बालकाण्डे ॥१ः६७॥ चित्रम्। ஸீதாகல்யாணம் सीताकल्याणम् चलचित्र से। प्रभात चित्र संस्था द्वारा ॥१२३॥ रिग्स्थूल। उत्तर यूरोपियों का रिग नाम के देवता की काव्यात्मक पुराणकथा। द्वितीय चित्र। उत्तर यूरोपीय रिग्देव की पुराणकथा का बचा हुआ एकमात्र लिपिबद्ध संस्करण॥ प्रत्यक्षतः मात्स्यन्याय से नहीं बच सके। राजा के कथन को ही न्याय मानना पडा। ना कि कोई अध्यात्ममूल शास्त्र। विकृतिवश समाज अनार्य रहा। उनका इतिहास अन्धकारमय बना ॥१२२॥ श्रीमहर्षिकपिलप्रणीतसांख्यदर्शनसूत्राणि। मुख्यतः मोक्ष की प्राप्ति तथा विवेक का महत्व तथा कुछ अन्य दर्शनों का खण्डन। अतिरिक्ततः पाटलिपुत्र का उल्लेख तथा उष्ट्रकुंकुमवहन का उदाहरण ध्यातव्य ॥१२१॥ रथः। देवरथपुष्यरथसांग्रामिकपारियाणिकपरपुराभियानिकवैनयिकांश्चरथान्कारयेत् ॥२ः३३॥ इतिकौटलीयार्थशास्त्रेरथाध्यक्षः॥ देवरथः। देवस्यादित्यस्यरथः। देवानांयानेविमानंच। देवताओं का रथ। सूर्य का रथ। विमान॥ सिनौली में प्राप्त रथ अवशेष जिसका सूर्यकिरण जैसे आभूषण युक्त पहिए हैं देवरथ का कोई प्रतिरूप हो सकता है। ना कि युद्ध का रथ॥ चित्र भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा ॥१२०॥ पंचतन्त्रम्। मूर्खबकनकुलकथा। उपायंचिन्तयेत्प्राज्ञस्तथाऽपायंचचिन्तयेत्। अपाय अर्थात दुष्परिणाम। कष्ट काल में सहायता का हाथ बढाने वाले दुष्ट भी हो सकते हैं। एक दुष्ट से बचने के लिए दूसरे दुष्ट के जाल में ना फँसें ॥११९॥ प्रश्नः। क्या भारत के साथ व्यापार सम्बन्ध कटने से चीनिस्तान चिन्तित होगा। उत्तरम्। नहीं। दस वर्ष पूर्व से ही उनका यह अनुमान था। मुख्यतः यूरोप तथा कुशद्वीप के साथ व्यापार सम्बन्धों को महत्व देते हैं। 叶海林的演講。॥११८॥ सहानुभूति। दूसरे के कष्ट से दुःखी होना॥ जब भारत में हिन्दू विरोधी अत्याचारी नियम लागू हुए तो विदेशी हिन्दुओं ने कुछ नहीं किया। उन नियमों का समर्थन भी किया। आज विदेशों में हिन्दुओं पर अत्याचारी नियम लागू हो रहे हैं। तो भारत के हिन्दुओं की इसके प्रति सहानुभूति शून्य ॥११७॥ कालः। अद्य शुक्रवारः शोभकृत्स्यवैशाखस्यकृष्णनवमी। १९४५ व॰ २ मा॰ ९ ति॰ । चन्द्रः उत्तराषाढा नक्षत्र। सूर्यः १० मु॰ ११५ प॰ पश्चात मेष राशि वसन्त ऋतु उत्तरायण देवयान। बृहस्पतिः मीन राशि ॥११६॥ श्रीकणादमुनिप्रणीतवैशेषिकदर्शनसूत्राणि। मुख्यतः तत्त्वज्ञान तथा वर्ग विश्लेषण सम्बन्धित। द्रव्यगुणकर्मों के सूचियाँ। कारणवाद गुरुत्व गति सम्बन्धित वैशेषिकसूत्र ॥११५॥ ताइवान के लोगों को भी पता नहीं ये क्या हो रहा है। हाहा। तीन वर्ष से वूहान की निन्दा कर रहे थे। आज ये कह रहे हैं 感到非常敬佩。 對整個人類的貢獻 । ग्वोमिनदांग शत प्रतिशत पलट गये चीनिस्तान प्रति द्वेष से राग तक ॥११४॥ नमस्कार। चित्र श्री॰ भरतकल्याण जी के जालस्थान से ॥११३॥ कालः। अद्य बुधवारः शोभकृत्स्यचैत्रस्यशुक्लप्रतिपदा। १९४५०११६ । चन्द्रः उत्तरभाद्रपद नक्षत्र। सूर्यः मीन राशि वसन्त ऋतु उत्तरायण देवयान। बृहस्पतिः मीन राशि। अद्यब्रह्मणोऽह्निद्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवराहकल्पेवैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविम्शतितमेयुगेकलियुगे कलिप्रथमचरणे१९४५तमेशकाब्दे शोभकृत्सम्वत्सरे। अत्रब्रह्माण्डे आकाशगङ्गेसौरमण्डलेभूर्लोके जम्बूद्वीपेभरतखण्डेभारतवर्षे ॥११२॥ शबरी। कच्चित्ते नियमाः प्राप्ताः कच्चित्ते मनसः सुखम्। कच्चित्ते गुरुशुश्रूषा सफला चारुभाषिणि॥ अद्य मे सफलं जन्म गुरवश्च सुपूजिताः॥ वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड में शबरी की इस कथा में स्पष्ट है कि उसका अपने आश्रम के गुरुओं प्रति सेवा निष्ठा थी। उनके अनुरोध पर ही आश्रम में ठहरी थी। प्रभु श्रीराम के सम्मुख होकर भी शबरी की इच्छा यही थी कि उन मुनियों के पास चली जाएँ। इस कथा में अशास्त्रीयता कुछ भी विदित नहीं। वर्तमान प्रचलित भक्ति मार्ग कथाएँ इससे अम्शतः अथवा पूर्णतः विसंगत ॥१११॥ प्रश्नः। क्या सभी भाषाएँ समान हैं। उत्तरम्। नहीं। विश्व के अन्य भाषाओं के तुलना में भारतीय भाषाएँ पृथक हैं। अर्थात कुछ लक्षण हैं जिनके प्रभाव से सुखमय जीवन सुलभ होता है। योग ध्यानादि का अधिकाम्श फल भी सुलभ। जिससे उत्कृष्ट सभ्यता पुनः प्राप्त होने की सम्भावना है। ये लक्षण ना पाश्चात्य सभ्यता के भाषाओं में दिखते हैं ना पौरस्त्य सभ्यता के। ना भविष्य में होने की कोई प्रयास का संकेत है। अतः सभी सार्थक कार्यों के लिए भारतीय भाषाओं का प्रयोग ही उचित॥ भारतीय अर्थात जो संस्कृत शास्त्र इतिहास पुराण से जोड बनाए रखे हैं। भाषा अर्थात विदेशी शब्द रहित। प्रयोग अर्थात विचार आलोचना तर्कण कल्पना सब में ॥११०॥ बीजगणितम्। प्रश्नः। देवनागरी में समीकरणों को कैसे लिखें। उत्तरम्। उ॰ याव ३ या २ं रू ३ । चित्रित उदाहरण भास्कराचार्य के बीजगणित से॥ अव्यक्तों के संक्षेपाक्षर या॰ का॰ नी॰ पी॰ लो॰ इत्यादि। क्रमशः यावत्तावत् अर्थात जितना उतना तथा कालक नीलक पीत लोहित। व्यक्त के लिए रूप संक्षेपाक्षर रू॰। ऋणात्मक संख्याओं के ऊपर बिन्दु। वर्ग के लिए व॰। वर्गमूल के लिए क॰। अव्यक्तों का गुणन भा॰ जोडकर याकाभा जैसे लिखित ॥ १०९ ॥ छेदगणित। प्रश्नः। बत्तीस का दो से कितने बार छेद कर सकते हैं। उत्तरम्। क्रमशः फल सोलह आठ चार दो एक। अतः पाँच बार॥ इस गणितीय प्रक्रिया के लिए नाम अर्धच्छेद धवला नाम की एक प्राचीन जैन गणित टीका में उपलब्ध। त्रिकच्छेद चतुर्थच्छेद भी वर्णित। यहाँ दो छेदाधार तथा पाँच छेदांक। यह गणितीय घात का ठीक उलटा प्रक्रिया है। दो का पाँच घात बत्तीस। छेदगणितीय मापदण्ड का प्रयोग बहुशः रेखाचित्रों में। साधारण संख्याओं का गुणन विभाजन छेदांकों का संकलन व्यवकलन बन जाता है॥ इसकेलिए वर्तमान प्रचलित शब्द लघुगणक अनावश्यक ॥ १०८ ॥ आवासः‌। गृहम्। घर। वासस्थान। निवासस्थान। बस्ती॥ इसका एक विदेशी विकृत रूप कुछ नगरों के वर्तमान नाम में प्रयुक्त। जो उत्पन्न हुआ स को द तथा व को ब बनाकर। अमुकावास का अर्थ अमुक व्यक्ति का आवास। आवासी अर्थात निवासी परन्तु विकृत रूप में जन संख्या॥ गगनावास। अन्तरिक्ष में मनुष्यकृत उपग्रही आवास। अन्तरिक्ष स्थानक ॥ १०७ ॥ शब्दावली॥ दीर्घतरंग। अर्थात दीर्घ विद्युत्तरंग। अर्थात विद्युत्चुम्बकीय। वर्णक्रम में अधोरक्त के उस पार। सापेक्षतः सूक्ष्म छोटा बडा॥ दीर्घतरंगज तारासंगम। चित्रित। नाम अर्धाश्वनर ए॰। पृथ्वी के निकटतम तथा दक्षिण गोलार्ध से दृश्यमान॥ दीर्घतरंग ग्राहक। द्वितीय चित्र॥ दीर्घतरंगदर्शक। अधिकाम्शतः प्रयुक्त युद्धक्षेत्र में अस्त्र विमान खोजने के लिए तथा दिशा दूरी मापने के लिए॥ दीर्घतरंगदर्शक प्रतीयमान क्षेत्रफल दी॰प्र॰क्षे॰। खोजनीयता की मात्रा॥ संगणक सम्बन्धित। समाकृति। किसी यन्त्र अथवा क्रम के विकल्पों के मूल्यांकों में परिवर्तन से उसकी कार्यशैली का परिवर्तन। व्यक्ति स्थिति अनुकूल प्रबन्ध। समाकृति अभिलेख अथवा पृष्ठ अथवा पटल द्वारा॥ विज्ञान सम्बन्धित। प्रकाश के किरणों का अपवर्तन विवर्तन के लिए स्पष्टतर शब्द तिरछाकरण तथा वक्रकरण॥ गणित सम्बन्धित। संकलन व्यवकलन के जैसे ही समाकलन अवकलन शब्द पहले से उपलब्ध तथा उचित॥ रेखागणित। वर्तमानतः कोज्या शब्द प्रुयक्त है। परन्तु रोमकाक्षर में को वस्तुतः भारतीय भाषा में स है। अतः यह सज्या होना चाहिए॥ कालगणना सम्बन्धित। मासों के लिए रोमक नाम अनुचित। संख्यानाम जैसे कि बारहवाँ मास अथवा द्वादश अथवा १२ मा॰ का प्रयोग उचित॥ विज्ञान तथा गणित में रोमकाक्षर अथवा ग्रीकाक्षर अथवा चिह्नों का प्रयोग अनुचित। कोष्ठक भी। व्यक्तिगत नाम भी। देवनागरी के अक्षर तथा भाषा के शब्द वाक्य का प्रयोग ही उचित ॥ १०६ ॥ प्रश्नः। अमेरिका यूरोप चीनिस्तान जैसे विदेशों में गीता का पाठ पढाने से क्या वो धार्मिक बनेंगे। उत्तरम्। नहीं। धार्मिक शिक्षा का लाभ धार्मिकों को ही लब्ध। शिक्षा से कोई धार्मिक नहीं बनता। कर्म फल प्राप्ति से ही बनते हैं। अतः यह श्रम व्यर्थ॥ चीनिस्तानी भाषा में इस के लिए कहावत भी है। 對牛彈琴 । हाहा॥ विदेशों से मर्यादा का पालन ही उचित ॥१०५॥ प्रश्नः। लोकतन्त्र का धर्म से क्या सम्बन्ध। उत्तरम्। कुछ भी नहीं॥ जितना भी बडा बहुमत हो अधर्म को धर्म नहीं बना सकता ॥१०४॥ अस्र। एक बिन्दु पर कटती हुई दो रेखाओं के बीच का अन्तर। इस के लिए वर्तमान प्रचलित शब्द वस्तुतः श्रृङ्ग अथवा सींग शब्द का विदेशी विकृत रूप है। अस्र का मापन अम्श पल विपल अ॰ प॰ वि॰ में॥ घात। गणित में गुणनफल॥ इन शब्दों का प्रयोग भास्कराचार्य के लीलावती में ॥१०३॥ शब्दावली॥ संगणक सम्बन्धित। कुंजी अथवा घुण्डी। टाँकना अथवा टंकण। मूषक तथा धावक चिह्न। फलकीकरण। तथ्यों को फलकाकार में प्रस्तुत करना। मूलविकल्प। वैयक्तीकरण। उपलग्न। क्रम विशेष जो आवश्यकता होने पर जोड सकते हैं॥ गणित सम्बन्धित। अविकारी। कारिका। अस्र। घात। सन्निकटन। वक्र आसंजन॥ विज्ञान सम्बन्धित। प्रस्फुरण। अन्तःगोल। गहनाकाश॥ स्टेल्लारियम के हिन्दी अनुवाद में प्रयुक्त ॥१०२॥ कालः। अद्य रविवारः शुभकृत्स्यमाघस्यकृष्णाष्टमी। १९४४११०८ । चन्द्रः चित्रा नक्षत्र। सूर्यः मकर राशि शिशिर ऋतु उत्तरायण पितृयाण। बृहस्पतिः मीन राशि ॥१०१॥ निमित्तम्। अर्थात हेतु। कारण। चिह्न। शुभाशुभ सूचक। यथा देवीभागवते। किं निमित्तं महाभाग। निमित्तविद। ज्योतिषी॥ नकारना अनुचित। हरहरमहादेव ॥१००॥ शुभकृत्स्यपौषस्यशुक्लचतुर्दशी। १९४४१०२९ । उत्तराखण्ड के जोशीमठ में भूधँसाव के कारण संकट की स्थिति ॥९९॥ भूगोलः। द्वीपों के नाम का प्रस्ताव। जम्बूद्वीप।१। भारत रुस यूरोप सब एक ही द्वीप। कुशद्वीप।२। नील नदी दक्षिण के कुश सभ्यता आधारित नाम। कूर्मद्वीप।३। वहाँ के मूलनिवासियों का एक पारम्परिक नाम। दक्षिण कूर्मद्वीप।४। दक्षिणद्वीप।५। अनुवादित नाम। दक्षिण हिमद्वीप।६। भारतवर्ष तथा हिन्द महासागर जुडी भूखण्ड भरतखण्ड। हिमालय के उच्चतम शिखर के लिए बोडदेश भाषा का जोमोग्लंग्मा अथवा नेपाली सगरमाथा नाम उचित ॥९८॥ चित्रम्। लंका तक सेतु का निर्माण। जयश्रीराम ॥९७॥ कालः। अद्य बुधवारः शुभकृत्स्यपौषस्यकृष्णचतुर्दशी। १९४४१०१४ । चन्द्रः ज्येष्ठा नक्षत्र। सूर्यः धनु राशि शिशिर ऋतु उत्तरायण पितृयाण। बृहस्पतिः मीन राशि ॥९६॥ प्रश्नः। भारतीय भाषाओं को ठुकरानेवाले भारतीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकते हैं। उत्तरम्। नहीं कर सकते ॥९५॥ सत्यवती॥ पराशर उवाच। कैवर्त्तपुत्रिका न त्वं राजकन्याऽसि सुन्दरि॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराणे आवन्त्यखण्डे रेवाखण्डे व्यासतीर्थमाहात्म्यवर्णनंनाम सप्तनवतितमोऽध्यायः ॥९४॥ संगणकतन्त्रम्। शब्दावली॥ अपक्रम। अर्थात क्रमभंग। क्रमक के चलन में बाधा अनपेक्षित कारणों से। क्रमादेश में कुछ चूक॥ क्रमस्खलन। जैसे भूस्खलन हिमस्खलन। तीव्र चूक॥ अपवर्ग। अभिप्लुतव्यपकर्षणमपवर्गः। अर्थशास्त्र से॥ इन स्थितियों के लिए उपाय के रूप में क्रम का पुनर्चालन अथवा पुनर्स्थापन अथवा पुनर्लेखन उचित ॥९३॥ सूक्तम्। बृहस्पति जिसे भी नष्ट करना चाहता है वह पहले उसे पागल बनाता है॥ कहावत यूरोपीय मूल। गूगल द्वारा संगणकीय अनुवाद॥ श्रीबृहस्पत्यायनमः ॥९२॥ महर्षिवाल्मीकि॥ सूत उवाच। वाल्मीकिरितिविख्यातोरामायणनिबंधकृत्। लोहजंघोद्विजोह्यासीत्पितृमातृपरायणः॥ ततस्तेमुनयोदृष्ट्वायमदूतोपमंचतम्। यज्ञोपवीतसंयुक्तंप्रोचुस्तेकृपयाऽन्विताः। ऋषय ऊचुः। अहोत्वंब्राह्मणोऽसीतितत्कस्मादतिगर्हिततम्॥ मुनय ऊचुः। वल्मीकांतःस्थितोयस्मात्संसिद्धिंपरमांगतः। वाल्मीकिर्नामविख्यातस्तस्माल्लोकेभविष्यसि॥ इति श्रीस्कान्दे महापुराणे षष्ठे नागरखण्डे ॥१२४॥ ॥९१॥ शुभकृत्स्यकार्तिकस्यमूलम्। १९४४०८२१ । गुजरात में झुलतो पुल के टूटने से सौ से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। ओम शान्ति सद्गति ॥९०॥ परम्परावादः। लकोटा जातिगत आध्यात्मिकता के शोषकों के प्रति युद्ध की घोषणा। चित्र लकोटा मुखिया सिट्टिंग बुल्ल का ॥८९॥ बासमती। एक प्रकार का सुगन्धित अन्न धान्य अथवा व्रीहि। विशेषतः इसका क्षेत्रीय चिह्न अथवा भौगोलिक उपदर्शन लागू है। जिसके कारण इसके बीज किसी अन्य क्षेत्र अथवा विदेशों में बोएँ तो बासमती नहीं कहला सकते। ढोंग अथवा चोरी का आर्थिक लाभ नहीं उठा सकते ॥८८॥ चित्रम्। तमिऴ पितामह उ॰वे॰स्वामिनाथएैयर ॥८७॥ ड्रागन। प्रश्नः। इसका भारतीय भाषाओं में क्या नाम है। यूरोपीय नाम से क्या है सम्बन्ध। कथाओं में इसका प्रिय चिन्तामणि वस्तुतः क्या है॥ वैसे पूर्वी जम्बुद्वीप में इसका नाम चीनिस्तानी भाषा के 龍 लोंग शब्द सम्बन्धित। अर्थात नाग॥ उपप्रश्नः। मूलतः पाश्चात्य लोगों का चीनिस्तान प्रति क्या डर है ॥८६॥ महाभारतम्। भीष्म उवाच। भार्याश्चतस्रोविप्रस्यद्वयोरात्माप्रजायते। इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि ॥४८॥ अर्थात जन्मना॥ चित्र गीता मुद्रणालय प्रकाशन से ॥८५॥ जैमिनीयपूर्वमीमाम्सा। स्मृतेर्वास्याद्ब्राह्मणानाम्। फलचमसविधानाच्चेतरेषाम्। सन्नाय्येप्येवंप्रतिषेधःसौमपीयहेतुत्वात्। चतुर्धाकरणेचनिर्देशात्। अन्वाहार्य्येचदर्शनात्॥ अन्वाहार्यः। पुरोहित को यज्ञ में दी जानेवाली दक्षिणा अथवा भोजन ॥८४॥ ज्ञातव्य। देशज हिन्दी ही सरलतम संस्कृत। अतः संस्कृत को ही सरल बनाने का श्रम व्यर्थ ॥८३॥ रोमकराज्यम्। समाज व्यवस्था के कुछ तत्त्व। त्रिभू। रोम नगर की स्थापना काल के तीन जाति। जो आज के यूरोपीय भाषाओं के वनजाति समानार्थ शब्द का मूल माना जाता है। फ्लामेन। रोमक समाज में उपासनाकर्ता। सम्भवतः ब्राह्मण का म्लेच्छ उच्चारण। हाहा। द्वादश देवताएँ। मुख्यतः बृहस्पति तथा मंगलग्रह जो युद्ध के दवता थे तथा अन्य एक जो सम्भवतः सूर्य अयन सम्बन्धित देवता थे। तीस क्षत्रिय कुल। जो शासन समिति के सदस्य थे। आजीवन राजा का चुनाव करते थे॥ चित्र कोलोसियम् का जो साम्राज्य काल में बना ॥८२॥ कालक्रमः। ध्यातव्य है कि चाणक्य के अर्थशास्त्र में भारत के षड्दर्शनों में से सांख्य तथा योग का ही उल्लेख है। लोकायत के साथ। मीमाम्सा का उल्लेख नहीं। अर्थात जैमिनि आदि इस शास्त्र के पश्चातकाल के हैं। कालान्तर में मीमाम्सा को इसमें जोड देने की साहस भी कोई ने नहीं की। हाहा। जैमिनि के पूर्वमीमाम्सा सूत्रों में संस्कार शब्द प्रयोजित है। रुचिकर बात है कि लाटिन भाषा में इसका समानार्थ शब्द है परन्तु ग्रीक भाषा में नहीं। जो आजके यूरोपीय भाषाओं के पवित्र शब्द का मूल भी है॥ वैसे पवित्र शब्द के लिए अनुवाद रूप में शुद्ध शब्द का प्रयोग एक दुष्ट चाल है। यूरोपीय नाट्सीवाद से जोडने का प्रयास। अथवा भौतिकवादीयों द्वारा। जो पवित्रता में विश्वास ही नहीं करते ॥८१॥ परम्परा। आर्यमर्यादाओं तथा धार्मिक परम्परा के पालनकर्ताओं को नमन ॥८०॥ पितृपक्षः। अद्य आश्विनस्यामावस्या। पितृलोकायनमः। कोरोना के उत्तरजीवियों का जय हो ॥७९॥ कालः। अद्य शनिवारः शुभकृत्स्याश्विनस्यपूर्वफाल्गुनी। १९४४०७१४ । सूर्यः कन्या राशि शरद ऋतु दक्षिणायन पितृयाण च। बृहस्पतिः मीन राशि ॥७८॥ ज्ञातव्य। पुरोहित की नियुक्ति। पुरोहितमुदितोदितकुलशीलंषडङ्गेवेदेदैवेनिमित्तेदण्डनीत्यांचऽभिविनीतमापदांदैवमानुषीणामथर्वभिरुपायैश्चप्रतिकर्तारंकुर्वीत। इति कौटलीयार्थशास्त्रे विनयाधिकारिके मन्त्रिपुरोहितोत्पत्तिः॥ नास्तिकों का हस्तक्षेप अनुचित। यज्ञ का नाटक केवल नाटक ॥७७॥ कोरोना। प्रश्नः। क्या चीनिस्तान के वूहान नगर पर कोरोना का आक्रमण सफल रहा। सफल अर्थात शासन में उलट पलट अथवा देश दुर्बल होने का अन्य लक्षण। उत्तरम्। लगता है असफल रहा॥ ईरान और रुस पर कोरोना आक्रमण का भी कुछ विशेष प्रभाव नहीं। भारत में कोरोना का चतुर्थ प्रकार का आक्रमण पश्चात पाँच लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। अन्य देशों विशेषतम कुशद्वीप के लोगों के लिए आंग्लो देशों पाश्चात्य संस्थाओं और पाश्चात्य विज्ञान कोई बडे विश्व उद्दारक जैसे नहीं बन सके ॥७६॥ मंगलजनक। प्रश्नः। मंगलग्रह का यह वर्ण कैसे उत्पन्न हुआ। उत्तरम्। रासायनिक तत्त्वसूची में आठवाँ तत्त्व का इस ग्रह की मिट्टी में उपस्थित लोहे पर प्रभाव के कारण। यह वायु पदार्थ पृथ्वी पर प्राण दायक और रक्त के वर्ण का कारण भी है। कुछ भारतीय भाषाओं में इसका नाम आम्लजनक अथवा अम्लजन बना है। जो पाश्चात्य नाम का अनुकरण है। कोरोना काल में इस नाम का प्रयोग भी हुआ। परन्तु इस नामकरण में दोष है कि वास्तविकता में तत्त्वसूची का लघुतम तत्त्व जिसका एक प्रथमकण है वह ही आम्लजनक है। आठवाँ तत्त्व नहीं। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने इस दोषपूर्ण नामकरण को आज तक ठीक नहीं किया एैसे ही छोड दिया। पर यह शब्द मूलतः भ्रामक है। अतः भारतीय भाषाओं में इस तत्त्व का नाम मंगलजनक अथवा अन्य सम्यक नाम का प्रयोग उचित होगा ॥७५॥ नवशब्दावली। जालावरोहण। जालारोहण। समचरणीकरण। जालसरणी। तथ्यकोश। स्मरणकोश। परिलेख भाषा। जालपता। जालजोड। तन्तुरहित मूलनिष्ठ संचार प्रणाली। विचलित संचार प्रणाली। जालावास। संचार द्वार संख्या। प्रकाशन संख्या। क्रमक। क्रमलेख। खुला क्रमलेख। कार्याभिलेख। रहस्यलेखीकरण। विद्युत्कोषभरण। तालपटल। नियन्त्रणतल। स्पर्श संकेत। लब्ध सन्देश पेटिका। मार्गदर्शन अन्तःपेटिका। छलनी। छानशब्द। अभिलेख प्रकार। वर्णबिन्दु। अंगारवत प्रकाशोत्पादक एकमार्गक पटल। संशोधित शब्दावली। विचलनशील संचार प्रणाली। अभिलेख रहस्यीकरण। एकमार्गक विद्युत्यन्त्र का द्वयन्त नाम भी है ॥७४॥ प्रथमंप्राकृतम्। प्रश्नः। प्रथम प्राकृत अर्थात संस्कृत सम्बन्धित प्राकृतों का उद्गम किस क्षेत्र में हुआ। उत्तरम्। संस्कृत सम्बन्धित प्राकृत जम्बुद्वीप में उपस्थित हैं भारत से लेकर यूरोप तक। इन सभी क्षेत्रों का अपना अपना प्रथम प्राकृत हो सकता है जिनका अन्य क्षेत्र के प्राकृतों से मेल जोड हुआ हो। परन्तु संस्कृत स्वयम् का उद्गम भारत के लुप्त नदी सरस्वती निकट हुआ। वेद पुराण इतिहास के स्मरण करने में प्रयोग हुआ। ना यूरोप ना रुस ना ईरान के भाषाओं से संस्कृत बना है। ना उन क्षेत्रों का अपना कोई स्थानीय संस्कृत है। ठोस तथ्य केवल भारत के संस्कृत का है। प्रथमप्राकृतवाद मूल रूप से काल्पनिक है। श्रेष्ठतमवाद से जुडा है। अतः प्रथम प्राकृत का उद्गम स्थान ढूण्ढना व्यर्थवाद ॥७३॥ विभिन्नता। जैसे अन्य लक्षण विभिन्नता का भी गुणवत्ता अनुसार वर्गीकरण कर सकते हैं। सत्त्व रजस तमस के साथ साथ असभ्य मत्स्य असुर्य म्लेच्छ का भी विभिन्नता है। सर्व समान समझकर स्वीकारना मूर्खता। तामसिक विभिन्नता का प्रोत्साहन अनुचित। असभ्य आदि का समर्थन समाज घातक। अन्ततः हिम्साजनक ॥७२॥ ज्ञातव्य॥ पश्चात्कोपे सामदानभेददण्डान् प्रयुञ्जीत॥ इति कौटलीयार्थशास्त्रे अभियास्यत्कर्मणि नवमाधिकरणे तृतीयोऽध्यायः ॥७१॥ महाभारतम्। एकलव्य की यह कथा में मूर्ति उपासना का उदाहरण। सम्भवतः प्राचीनतम॥ अरण्यमनुसंप्राप्यकृत्वाद्रोणंमहीमयम्। तस्मिन्नाचार्यवृत्तिंचपरमामास्थितस्तदा॥ एकलव्य वनमें लौटकर द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनायी तथा उसीमें आचार्यकी परमोच्च भावना रखकर उसने धनुर्विद्याका अभ्यास प्रारम्भ किया॥ अनुवादक पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री। गीता मुद्रणालय गोरखपुर ॥७०॥ महाभारतम्। यदिशिष्योऽसिमेवीरवेतनंदीयतांमम। इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि॥ गुरु दक्षिणा देने की धार्मिक परम्परा के ठीक अनुसार चले एकलव्य॥ चित्र गीता मुद्रणालय प्रकाशन से ॥६९॥ ढोंगित्व। ढोंगी होने का तत्त्व। ढोंगी अर्थात ढोंग करनेवाला। ढोंग अर्थात धोखा देना। मिथ्या जाल में फँसाना। कपट व्यवहार। धन अथवा अधिकारी पदवी के लिए कपटनाटक। मुखौटाधारी। बहुरूपी। निर्लज्जता परम लक्षण। योग्यतावाद का परम शत्रु। ढोंगी सङ्गठनों से सम्बन्ध रखना अनुचित। प्रश्नः। ढोंगियों से समाज कैसे बचें। उत्तरम। योग्यता की परीक्षा करना कठिन बात है। गुण केवल वास्तविक घटनाओं से पता चलता है। और ढोंगी अनेक वर्षों दशकों तक अपना सच्चा रूप छुपा सकते हैं। पर समाज में ढोंगियों का होना अत्यंत हानिकारक है। अतः योग्यतावाद से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि समाज ढोंगियों से बचें। इसी लिए योग्य व्यक्ति के पदोन्नति से अधिक मान्य है आयु आधारित पदोन्नति। अथवा परिवार आधारित। धार्मिक सिद्धान्त और परम्परा के ठीक अनुसार चलनेवाले ढोंगी नहीं। इसीलिए इनका नाश ढोंगियों का परम लक्ष्य। अतः योग्यतावाद के नाम पर ढोंगी बाधक रीतियों को मिटाना अनुचित ॥६८॥ ज्ञापनम्। अमुक किरणों का नाम अमुक किरण रखना अनुचित ॥६७॥ चित्रम्। आकाशगंगा के मध्य का राहुखण्ड। नाम धनुस्यप्रथमोत्तेजक। दिशा धनु तथा वृश्चिक राशी की ओर। दूरी उन्नीस अन्त्य योजन। आकार व्यास अडतीस लाख योजन। गुरुत्व चार सौ नवासी प्रयुतवर्ग तोला। सूर्य इसका प्रदक्षिणा कर रहा है तेईस करोड वर्ष में एक चक्कर॥ अन्त्य अर्थात एक का दसगुना पन्द्रह बार। प्रयुतवर्ग छत्तीस बार॥ चित्र चन्द्रा दूरदर्शक यन्त्र से। इस उपग्रही ख किरण अवलोकनालय का नाम ज्योतिषशास्त्रज्ञ श्री सुब्रह्मण्यन चन्द्रशेखर के सम्मान में रखा गया। परन्तु चित्र थोडा बनावटी है। क्योंकि राहुखण्ड स्वयम अदृश्य वस्तु माना जाता है। और अन्तरिक्षीय मेघों के कारण यह क्षेत्र समान्य रूप में भी अदृश्य है। तो यह केवल ख किरणों का प्रतिरूप दृश्यमान तरंगों में दर्शाया गया। एैसे ग्रहों का परम लक्षण है घटनाक्षितिज। अर्थात इस क्षितिज के पार की घटनाएँ बाहरी विश्व से पता चलना असम्भव माना जाता है आज के वैज्ञानिकों द्वारा। क्योंकि इसका गुरुत्वाकर्षण प्रकाश को भी फँसा देता है क्षितिज के भीतर। अन्य ग्रह तार अथवा मेघ का इसमें गिरना और भस्म होने के कारण शक्तिशाली ख किरणों उत्पन्न होते हैं। अन्तकाल। सम्भवतः दूर की भविष्य में एैसे राहुखण्ड आकाशगंगा के सभी अन्य ग्रहों को खा जाए। अथवा महा विस्फोट में नष्ट हो जाए। अथवा ऊर्जा की क्षय से स्वयम निरस्त हो जाए ॥६६॥ मत्स्यता। निर्धन को धन देना ठीक। सामाजिक लूटमार की छूट अनुचित। शासन प्रोत्साहित लूटमार अत्यन्त अनुचित। नियमित लूटमार असभ्य। ॰ लूटमार मत्स्य। परम्परागत असुर्य ॥६५॥ कालगणना। पूर्णिमान्त और शक कालगणना में थोडा विसंगति है। शक वर्ष आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ। और पूर्णिमान्त चैत्रादि चन्द्र मासावली अनुसार वर्ष आरम्भ चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से। अर्थात अर्धमास का अन्तर। सम्भवतः इसी कारण अमान्त को मान्यता प्राप्त हुआ। परन्तु यह बडी समस्या नहीं यदि मान लें कि शक वर्ष केवल सांख्यिक गणना है न कि कालावधि का मापन ॥६४॥ कालगणना। अद्य बुधवारः शुभकृत्स्याषाढस्यरेवती। १९४४०४०९ । सूर्यः दक्षिणायन तथा देवयान मिथुन राशि वर्षा ऋतु। बृहस्पतिः मीन राशि ॥६३॥ ज्योतिषशास्त्रः। कृत्तिका। तैत्तिरीयब्राह्मणम् में भी इस नक्षत्र का वर्णन है। कृत्तिकाःप्रथमम्। विशाखेउत्तमम्। तानिदेवनक्षत्राणि ॥१ः५॥ श्रीमृगेन्द्रविनोद के प्रस्तुत विचार अनुसार यह चन्द्रमा का उत्तर तथा दक्षिन का मासिक अयन है। इस के लिए कृत्तिका आकाशीय विशुवत वृत्त पर होना चाहिए। स्टेल्लारियम क्रमक से प्राप्त है कि यह आज से चार सहस्र नौ सौ पैंतीस वर्ष पूर्व का स्थिति था ॥६२॥ ज्योतिषशास्त्रः। कृत्तिका। शतपथब्राह्मणम् में कृत्तिका नक्षत्र को सूर्योदय पर पूर्व दिशा का आधार कहा गया। एताहवैप्राच्यैदिशोनच्यवन्ते। भवतस्तस्मात्कृत्तिकास्वादधीत ॥२:१ः२॥ प्रस्तुत चित्र में चार सहस्र आठ सौ छब्बीस वर्ष अद्यपूर्व की सूर्योदय स्थिति का आधुनिक गणिताधारित अनुमान दर्शाया है। प्रत्यक्ष है कि इस का शतपथ ब्राह्मण के सूत्र से मेल है। और उस काल से दो सौ वर्ष पूर्वापर भी यह मेल नहीं। चित्र स्टेल्लारियम क्रमक से। 東 अर्थात पूर्व दिशा। अतः म्यूल्लर का कालक्रम मिथ्या है। आर्य आक्रमण वाद और प्रवासन वाद झूठ हैं ॥६१॥ प्रतिवादः। समाज का सैन्यीकरण अत्यन्त अनुचित ॥६०॥ प्रश्नः। देश चुनावी लोकतन्त्र है तो सम्यक् पथ लौटने के लिए किसको मतदान दें। उत्तरम्। न शत्रु न कायर न मूर्ख ॥५९॥ कुक्कुटः। आज के कथित वैज्ञानिकों ने कुक्कुटी का ग्राम्यीकरण का मूलस्थान थाईदेश और काल तीन सहस्र पाँच सौ वर्ष अद्यपूर्व घोषित किया। ग्राम्य अर्थात वन्य विपरीत स्वभाव अथवा निवास पशु पक्षी आदि। शोधपत्र में म्यूल्लर का भारतीय इतिहास का मिथ्या कालक्रम दोहराया गया। मिथ्यावाद का दुष्ट प्रभाव सौ से अधिक वर्ष चालू। ह्म्फ् ॥५८॥ ज्ञातव्य। विकल्पवाचक शब्द अथवा अन्यथा ही पर्याप्त ॥५७॥ ज्ञापनम्। आज भी यूरोप के वंशाणुशास्त्रज्ञ बता रहे हैं कि भारतवर्ष पर आर्य आक्रमण अथवा प्रवासन की काल्पनिक कहानी मान्य है। ह्म्फ्। १९४४ ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी ॥५६॥ अर्थशास्त्रम्॥ कुलस्यवाभवेद्राज्यंकुलसङ्गोहिदुर्जयः। अराजव्यसनाबाधःशश्वदावसतिक्षितिम्॥ इतिकौटलीयार्थशास्त्रेविनयाधिकारिकेराजपुत्ररक्षणम्॥ प्रश्नः। कुल अथवा परिवार आधारित शासन के क्या गुण। उत्तरम्। अर्थशास्त्र के अनुसार। कुल का भी संमिलित राज्य हो सकता है। इसमें अराजकता का भय नहींं रहता तथा स्थिरता रहती है और शत्रु इसपर विजय नहींं प्राप्त कर सकता। अनुवादक। श्रीयुत प्राणनाथ विद्यालङ्कार। प्राध्यापक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय॥ अतः वम्शाधारी दलों को नकारना अनुचित ॥५५॥ ज्ञातव्य। संयोजक शब्द और एवम् तथा ही पर्याप्त ॥५४॥ सङ्गणकतन्त्रम्॥ कार्यसंचय का प्रयोग। संचय में नया वस्तु डालने के लिए च। निकालने के लिए छ अथवा ख। हटाने के लिए क्ष॥ उदाहरणम्॥ अमुककार्यम्। संख्याःच। १२००० पन्द्रह। प्रवाक्यंच। प्रति दिवस में ख मुहूर्त और प्रति मुहूर्त में ख निमेष होते हैं। कथयतु॥ एैसे वाक्य बनाते समय ख अक्षर के स्थान पर संचय में जो है वो एक एक करके निकालकर जोडा जाएगा और अंत में प्रस्तुत होगा। संख्याएँ एक से सौ तक शब्दों में अन्यथा अंकों में प्रस्तुत ॥५३॥ प्रश्नः। शिक्षा का माध्यम कैसे भारतीय बनाएँ। उत्तरम्। चतुष्पद योजना। पहले कला और संस्कृति सम्बन्धित विषयों को भारतीय भाषा माध्यम में अनिवार्य करें। तत्पश्चात इतिहास और शासनतन्त्र। तत्पश्चात विज्ञान और गणित। तत्पश्चात उच्चतर शिक्षा के विषय। दो अथवा तीन वर्ष प्रति पद॥ प्रश्नः‌। भारतीय भाषाएँ कैसे परस्पर जोडें। उत्तरम्। संस्कृत शब्दावली से॥ हिन्दी व्यवहारिक भाषा माना जाए ॥५२॥ सङ्गणकतन्त्रम्॥ यन्त्र से लेख पढने के लिए क्रमलेख उदाहरणम्॥ कःपत्रसारः। वाक्यंच। पत्र का नाम। कथयतु। शृणु। यन्त्रात्पठतु। कथयतु॥ उपयोगकर्ता से पत्र का नाम पूछकर यंत्र से पढकर उसे प्रस्तुत करता है। यदि उस नाम का पत्र न हो तो क्षमा सूचक कार्यसंचय में रखा जाएगा और प्रस्तुत होगा ॥५१॥ बौद्ध संघ को प्रणाम॥ १९४४ ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी ॥५०॥ अभिनन्दनम् सेना रस्सीय ॥ शक १९४४ पूर्णिमान्त ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी ॥४९॥ ऋणम्वादः। अर्थात लोगों को अपने पूर्वजों का पाप ऋणवत् चुकाना पडेगा। यह विदेशी मत से जुडा है जो मानते हैं कि आदि मानव के दुष्टकर्म के कारण सभी मानवजात जनम से ही दोषी हैं। जो भय आधारित मतान्तरण का चाल है। इसके विपरीत धर्म और कर्म अनुसार कर्म का फल व्यक्तिगत है। जो दुष्टकार्य करे उसका फल उसी को भुगतना पडेगा। ऋणंवाद तर्कहीन है। इसके आधार पर न्याय नियम लागू करना अनुचित ॥४८॥ सङ्गणकतन्त्रम्॥ संचय आधारित क्रमलेख॥ वस्तुओं का लेन देन कार्यसंचय के माध्यम से। वाक्यों का सीधा यन्त्र से उपभोक्ता को कहना अथवा सुनना॥ उदाहरणम्। यन्त्र से समय पूछना है तो क्रम एैसे लिख सकते हैं॥ कःसमयः। यन्त्रस्यकालः। अग्रम्वाक्यम्। कथयतु॥ कार्य का नाम पहले लिखा है। कार्य के पहले पद में संगणक से काल पूछा गया। उत्तर कार्यसंचय में रखा जाएगा। यदि इसका रूप दो वाक्यों का हो जैसे॥ मुहूर्तादि। दिनान्कादि॥ तो उससे प्रथम वाक्य जो केवल समय की सूचना है चुनकर संचय में डालकर उसको प्रस्तुत किया जाएगा ॥४७॥ प्रश्नः। नास्तिकों का अधिकार हिन्दू मन्दिरों में क्या होना चाहिए॥ उत्तरम्। शून्य ॥४६॥ शब्दसागर॥ हास्य। हँसने योग्य। जिसपर लोग हँसें। हँसनेवाला। हास्य उत्पन्न करनेवाला। महामुनि भरत कहते हैं कि श्रृंगार रस की अनुकृति हास्य है। आनन्द। उपहास। निन्दापूर्ण हँसी। अट्टहास। बलपूर्वक हँसी॥ ताली पीटना अथवा बजाना। हँसी उडाना। उपहास करना॥ नास्तिक। वह जो ईश्वर परलोक आदि को न माने॥ भौतिकवाद। वह मत अथवा सिद्धांत जो पंचभूतों को मुख्य मानता हो॥ पंचभूत। आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी ॥४५॥ गति॥ प्रकाशः। अन्तरिक्ष में प्रकाश का वेग एक सहस्र तीन सौ तीस योजन तीन क्रोश उनतालीस दण्ड प्रतितुट॥ ध्वनि। सामान्य वातावरण में ध्वनि का वेग बारह दण्ड सत्रह अंगुल दो यव प्रतितुट॥ चार गुणा प्रतिनिमेष ॥४४॥ चित्रम्। मापनम् ॥४३॥ कालमानम्॥ दो तुट का एक लव। दो लव का एक निमेष। पाँच निमेष का एक काष्ठा। तीस काष्ठा का एक कला। चालीस कला का एक नाडिका। दो नाडिका का एक मुहूर्त। पन्द्रह मुहूर्त का एक दिवस। एक रात्रि भी। एक दिवस और एक रात्रि का एक दिन। पन्द्रह दिन का एक पक्ष। दो पक्ष का एक मास। दो मास का एक ऋतु। तीन ऋतु का एक अयन। दो अयन का एक सम्वत्सर। पाँच सम्वत्सर का एक युग ॥४२॥ मापनम्॥ कालमानम्॥ अर्थशास्त्रम्॥ द्वौतुटौलवः। द्वौलवौनिमेषः। पञ्चनिमेषाःकाष्ठा। त्रिंशत्काष्ठाःकला। चत्वारिंशत्कलानाडिका। द्विनालिकोमुहूर्तः। पञ्चदशमुहूर्तोदिवसोरात्रिश्च। पञ्चदशाहोरात्राःपक्षः। द्विपक्षोमासः। द्वौमासावृतुः। द्व्ययनःसंवत्सरः। पञ्चसंवत्सरोयुगमिति॥ एक तुट का अवधि साठ सहस्रतमसेकण्ड ॥४१॥ दिकम्पनी। दि अर्थात वो। अर्थात केवल एक। अन्य नाम अनावश्यक। कम्पनी का मूल अर्थ। साथ साथ रोटी। पाश्चात्य विश्लेषण। वैकल्पिक मूल अर्थ। सब प्रकार का व्यापार। सामान्य अर्थ। व्यापार श्रेणी अथवा संगठन। वास्तविकता। सबका लूटमार अपना विकास। ह्म्फ्। शक १६७९ से १७८० तक भारत में शासक ॥४०॥ पणम्। प्रश्नः। अर्थशास्त्र अनुसार दण्ड के लिए पणम् देना पडता था। अर्थात पणम् का व्यापक उपलब्धी था। जो अयस् नहींं था। रूपम् नहीं। रत्न तथा मणि भी नहीं। पुराणों के वम्शावली अनुसार मौर्य और चाणक्य का काल तीन सहस्र पाँच सौ वर्ष अद्यपूर्व था। पण्य का अर्थ व्यापार। तो पणम् का अवशेष सिन्धुपार विदेशों मे भी प्राप्त होना चाहिए। तो भारत अथवा विदेशों के पुरातत्त्व खोजों में क्या है पण। क्या है निष्क। कौन थे पण्यकार। ह्म्म्म् ॥३९॥ रूपम्। अर्थात निश्चित आकार भार और मूल्य का शासन प्रमाणित चिह्न मुद्रित अयस्खण्ड। ताम्ररूपम् रूप्यरूपम् सुवर्णरूपम्। ताम्र रजत और सुवर्ण प्रमुख पदार्थ के मुद्रित अयस्खण्ड॥ रूप्यकम्। दशमलवीकरण पूर्व। तीन पाई का एक पैसा। चार पैसे का एक आना। सोलह आने का एक रुपया॥ एक रुपया का भार एक तोला था। सामान्य द्रव्यों की तुलना का प्रतिमान भी था ॥३८॥ मापनम्॥ तुलामानम्॥ लीलावती॥ तुल्यायवाभ्यांकथितात्रगुंजावल्लस्त्रिगुंजोधरणंचतेऽष्टौ। गद्याणकस्तद्द्वयमिंद्रतुल्यैर्वल्लैस्तथैकोधटकःप्रदिष्टः। दशार्द्धगुंजंप्रवदंतिमाषंमाषाह्वयैःषोडशभिश्चकर्षम्॥ अर्थः। दो यव का एक गुंजा। पाँच गुंजों का एक माषा। सोलह माषों का एक कर्ष॥ भूतसंख्या में इन्द्र चौदह हैं॥ अतिरिक्त॥ अस्सी वराटक का एक पण। दो सौ छप्पन पण का एक निष्क॥ छियानवे रत्ती का एक तोला॥ पुरातत्त्व खोजों से अनुमान है कि एक यव का तुल्य पचासी दशमलव एक आठ सात पाँच सहस्रतमग्राम था ॥३७॥ अनुमानम्। शक्य है कि अङ्गुल अथवा अंगुली शब्द ही आंग्लो राज्य देश जाति और भाषा के नाम का मूल है। हाहा ॥३६॥ मापनम्॥ देशमानम्॥ लीलावती॥ यवोदरैरंगुलमष्टसंख्यैर्हस्तोंऽगुलैःषड्गुणितैश्चतुर्भिः। हस्तैश्चतुर्भिभवतीहदंडःक्रोशःसहस्रद्वितयेनतेषाम्। स्याद्योजनंक्रोशचतुष्टयेनतथाकराणांदशकेनवंशः॥ अर्थः। आठ यव का एक अंगुल। चौबीस अंगुलों का एक हाथ। चार हाथ का एक दण्ड। दो सहस्र दण्ड का एक क्रोश। चार क्रोश का एक योजन॥ धोलावीरा लोथल आदि स्थलों से पुरातत्त्व संशोधन परिणाम प्राप्त है कि एक यव का आकार दो दशमलव दो सहस्रतममेत्र था। एक योजन इसका ६१४४००० गुणा अर्थात तेरह दशमलव पाँच एक छः आठ सहस्रमेत्र है ॥३५॥ गणनम्॥ लीलावती॥ एकदशशतसहस्रायुतलक्षप्रयुतकोटयःक्रमात्। अर्बुदमब्जंखर्वनिखर्वमहापद्मशंकवस्तस्मात्॥ जलधिश्चांत्यंमध्यंपरार्द्धमितिदशगुणोत्तराःसंज्ञाः। संख्यायाःस्थानानांव्यवहारार्थंकृताःपूर्वैः ॥३४॥ புதுவர்ஷம் ஸௌபாக்யமஸ்து • अद्यशुक्रवारः। शक १९४४ शुभकृत्सम्वत्सरः। चन्द्रः चैत्रमास शुक्लपक्ष चतुर्दशी तिथि उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र। सूर्यः उत्तरायण देवयान च मेषराशि वसन्त ऋतु। बृहस्पतिः मीनराशि॥ वस्तुतः प्रत्यक्ष स्थिति है कि सूर्य मीनराशी में ही है। पर मेषादि राशीचक्र का समान आकार द्वादश अम्शों के प्रथम अम्श में सूर्य चल चुका है। यह मेष संक्रान्ति ही तमिऴ चैत्रादि चन्द्रमास नाम सौरमान नववर्ष है ॥३३॥ अद्यशनिवारः। शक १९४४ शुभकृत् सम्वत्सरः। चन्द्रः चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि रेवती नक्षत्र। सूर्यः उत्तरायण देवयान च मीन राशि वसन्त ऋतु। बृहस्पतिः कुम्भ राशि ॥३२॥ अद्यब्रह्मणोऽह्निद्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवराहकल्पेवैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविम्शतितमेयुगेकलियुगे कलिप्रथमचरणे१९४४शकाब्दे शुभकृत्सम्वत्सरे। अत्रब्रह्माण्डे आकाशगङ्गेसौरमण्डलेभूर्लोके जम्बूद्वीपेभरतखण्डेभारतवर्षे ॥३१॥ अद्यब्रह्मणोऽह्निद्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवराहकल्पेवैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविम्शतितमेयुगेकलियुगे कलिप्रथमचरणे१९४३शकाब्दे प्लवसम्वत्सरे। अत्रब्रह्माण्डे आकाशगङ्गेसौरमण्डलेभूर्लोके जम्बूद्वीपेभरतखण्डेभारतवर्षे ॥३०॥ अद्य सोमवारः। शक १९४३ प्लव सम्वत्सरः। चन्द्रः चैत्र मास कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि स्वाती नक्षत्र। सूर्यः उत्तरायण देवयान मीन राशि वसन्त ऋतु। बृहस्पतिः कुम्भ राशि ॥२९॥ इतिहासः। शक १८६४。大東亞共榮圈。पूर्वी जम्बुद्वीप समृद्धि महामण्डल ॥२८॥ प्रश्न:। चैना ने पंद्रह वर्ष पूर्व अपनी उच्च गति लोहपथवाहनों की यातायात जाल का निर्माण योजना क्यों चलाया। यद्यपि इस योजना से आर्थिक लाभ की सम्भावना नहीं। वायु विमान की तुलना में। उत्तरम्। बोयिंग और एयरबुस आज रुस में अपने विमानों का देखरेख बन्द किया। तो क्या चैना भी एैसी ही स्थिति के सम्मुख होने की सम्भावना देखकर ये निर्णय लिया था। ह्म्म्म् ॥२७॥ मर्यादा॥ यक्षउवाच। पार्थमासाहसंकार्षीर्ममपूर्वपरिग्रहः॥ महाभारते आरणेयपर्वणि॥३१३॥ यक्ष ने कहा। पार्थ। तुम पानी पीने का साहस न करना। यह पहले से ही मेरे अधिकार की वस्तु है॥ अनुवादक पण्डित रामनारायणदत्त शास्त्री। गीता मुद्रणालय॥ पञ्च पाण्डवों में केवल युधिष्ठिर ने बक रूप यक्ष की बात सुनी ॥२६॥ कालः। वैदिक घडी। चित्रम् द्रिकपञ्चाङ्ग क्रमकात। वास्तविक स्थिति स्थान और नियम आधारित घडी। कभी मन्द कभी तेज। काल गति भी असमान ॥२५॥ चिह्नम्। श्रीमृगेन्द्रविनोद जी के अनुसार यह सरस्वती सभ्यता के चिह्न में चित्रित पशु के सम्मुख यज्ञ का यूप स्तम्भ है। श्रीमद् वाल्मीकि रामायण में ऋश्यशृङ्ग पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए प्रसिद्ध हैं। शृङ्ग अर्थात सींग। पुत्रेष्टि अर्थात पुत्रलाभ की इच्छा से किया यज्ञ। तो सम्भवतः एैसे एक शृङ्ग वाले विचित्र पशु के चिह्न पुत्रेष्टि यज्ञ के प्रतीक हैं। ऋश्यशृङ्गइतिख्यातंनामकर्मचमेभुवि॥ बालकाण्डे दशमस्सर्ग: ॥२४॥ गीतम्। वयस्क। मेशिका ಮೆಶಿಕಾ மெஷிகா मेशिका ಮೆಶಿಕಾ மெஷிகா मेशिका ಮೆಶಿಕಾ மெஷிகா ॥२३॥ शब्दार्थः। कोटि। वर्ग। श्रेणी। किसी वादविवाद का पूर्वपक्ष। उत्तमता। समूह। सौ लाख। राशिचक्र का तृतीय अंश‌ ॥२२॥ चित्रम्। शिक्षानीति प्रस्ताव ॥२१॥ शिक्षानीति प्रस्ताव॥ भाषा। अर्थात देशज संस्कृत प्राकृत मूल। अन्यथा विलुप्तव्य। संस्कृत। अर्थात शब्द तथा मन्त्र रचना का तन्त्र। ज्ञान का भण्डार। शास्त्र का माध्यम॥ पाठ्यशैली। ध्वनि के माध्यम से। पुस्तकों से नहीं। मातृभाषा में। संस्कृत अन्तर्निहित। पृथक नहीं॥ पाठ्यरूप। मन्त्र स्मरण करने के लिए। भाषा विस्तार में समझाने के लिए॥ पाठ्यविषय। शब्द वाक्य मन्त्र का अर्थ। व्याकरण नहीं। विज्ञान गणित इतिहास आदि ॥२०॥ अद्य शनिवारः। शक १९४३ प्लव संवत्सर। चन्द्र पौष मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि मृगशिरा नक्षत्र। सूर्य उत्तरायण पितृयाण शिशिर ऋतु मकर राशि। बृहस्पति कुम्भ राशि ॥१९॥ मध्य देशः। हिमालय से विन्ध्याचल तक। विनशन से प्रयाग तक। 中。國。從 喜馬拉雅到溫迪亞車勒。從委納舍納到普拉雅格。अतः चै ना के लिए  琦娜 ची ना अथवा समध्वनिक अक्षर युक्त नाम ही उचित। विनशन स्थान एैतिहासिक सरस्वती नदी से जुडा है। जो ४००० वर्ष पूर्व लुप्त हुई। तो सम्भवतः यह सूत्र उससे अधिक पुराना है ॥१८॥ चित्रम्। प्रभा ॥१७॥ संगणक भाषा प्रस्ताव। नाम प्रभा। देवनागरी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा लिपि के लिए। क्रमादेश का रूप सामान्य लेख जैसा। चलाने का ढंग सम्वाद जैसा। शब्दावली। देशज संस्कृत अथवा प्राकृत मूल। संख्यावली। एकादि। शून्यादि नहीं। वस्तुप्रकार। अक्षर शब्द वाक्य। संग्रहप्रकार। वाक्यावली शब्दकोष। विरामचिह्न। डण्डा दोहरा डण्डा। लक्ष्य। क्रमकोत्पादक लेखक्रमक गणितक्रमक कार्यसंग्रह यन्त्रजाल संवादक यन्त्रसंचालक ॥१६॥ ज्योतिषशास्त्रः। १९४३ वर्ष पूर्व। चैत्र अमावस्या। प्रातः। मेषराशि में सूर्य चन्द्र और बृहस्पति का संयोग। स्टेल्लारियम् क्रमक उत्पादित। शक काल आरम्भ का प्रामाणिक तथ्य। चन्द्रमान मास और सौरमान वर्ष और बार्हस्पत्य द्वादश वर्षीय चक्र का समकाल आरम्भ ॥१५॥ अद्य बुधवारः। शक १९४३ प्लव संवत्सर। चन्द्र पौष मास कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि पुष्य नक्षत्र। सूर्य उत्तरायण पितृयाण शिशिर ऋतु धनु राशि। बृहस्पति कुम्भ राशि ॥१४॥ पूर्वमीमाम्सा। प्रश्नः। वेदों में सहस्र संवत्सर सत्र के यज्ञ का वर्णन है। क्या ये वास्तविक है। उत्तरम्। कुछ लोग कहते हैं नहीं ये असम्भव ही है। केवल देवता ये यज्ञ कर सकतें हैं। अन्य मत है कि एक कुल अथवा परिवार सहस्र वर्ष तक यज्ञ चलाते रहे। अन्य मत है कि संभवतः दो सौ लोग पांच वर्ष का यज्ञ सहस्र का समान अर्थ है। जैमिनि का मत है कि संवत्सर शब्द का अर्थ दिन भी था। एक व्यक्ति तीन वर्ष में कर सकेगा ॥१३॥ अद्य मङ्गलवारः। शक १९४३ प्लव संवत्सर। चन्द्र पौष मास कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि पुनर्वसु नक्षत्र। सूर्य दक्षिणायण पितृयाण हेमन्त ऋतु धनु राशि। बृहस्पति कुम्भ राशि ॥१२॥ ताय्वान नवसुनी। 臺灣東森新聞。琦娜解放軍實驗基因編碼加強高海拔適應力。打造超級士兵。面對喜馬拉雅山的戰爭可能。चैना की सेना का प्रयास। वंशाणु परिवर्तन क्रिया के प्रयोग से ऊंचाई के पर्यावरण में अनुकूलित होने की क्षमता बड़ाना। श्रेष्ठ स्तर के सैनिक बनाना। हिमालय में युद्ध की सम्भावना के कारण ॥११॥ चित्रम्। कलकत्ता का राहुखण्ड ॥१०॥ स्त्रीमर्यादा। महाभारत शान्तिपर्व में देवी सरस्वती को वेदों की जननी कहा गया है। लोपामुद्रा ने ऋषि अगस्त्य को सिखाया गृहस्थ जीवन का महत्त्व।ब्रह्मवादिनी गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य की ज्ञान परीक्षा की और उसे सम्मान योग्य घोषित किया ॥९॥ शब्दकल्पद्रुमः। आचार्य्या। स्त्री। मन्त्रव्याख्याकर्त्री। वेदादिशास्त्राध्यापनकर्त्ती ॥८॥ ग्रन्थः। लीलावती। श्रीभास्कराचार्य्यविरचिता। भारत का प्रमुख गणित पाठ्य ग्रन्थ ॥७॥ शब्दार्थः। एकेन्द्रिय। सांख्य दर्शन में भी इस पर कुछ वाद है ॥६॥ प्रश्नः। लौकिक वस्तु स्थान कार्य अथवा सम्बन्ध कैसे पवित्र होता है। केवल कहने से। अथवा नियमों से। अथवा कथा से। अथवा उपासना से। अथवा यज्ञ से। अथवा संस्कार से। शब्दार्थः। संस्कार। मूल हिन्दी शब्दसागर दसवां भाग ७८ तथा ७९ पृष्ठ ॥५॥ विदुर उवाच। जो जिसके साथ जैसा बर्ताव करे उसके साथ दूसरा भी वैसा ही बर्ताव करे। मायावी के साथ माया से। साधु के साथ साधुभाव से बर्ताव करना चाहिए। इतिश्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि प्रजागरपर्वणि विदुरवाक्ये सप्तत्रिंशोऽध्यायः॥३७॥ श्रीकरपात्रीजी अनुवादित ॥४॥ தமிழ் தாத்தா சாமிநாதையர் ॥३॥ புத்தாண்டு சுபமஸ்து • अद्य शक १९४३ वर्ष प्लव संवत्सर। चैत्र मास शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि भरणी नक्षत्र। सूर्य उत्तरायण वसन्त ऋतु मेष संक्रान्ति अश्विनी नक्षत्र ॥२॥ नमस्कार। வணக்கம் • ನಮಸ್ಕಾರ ॥१॥